Rajani katare

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करिया मोड़ी भाग ---- 2

                     "करिया मोड़ी" भाग -2

पिछला भाग:--
ऐ भगवान काये की सजा दयी हमाये लाने...इततो पूजा पाठ...झाड़ फूंक...रुपैया लूट लओ औझा ने..
ऐ जमना का बिगाड़ो हमने तोरौ...मौड़ी जन दयी... ओ भी करिया मौड़ी...... 
अब आगे :--
जमना की तो अब शामत ही आ गयी....शान्ति बाई 
के मनसूबों पर.... पानी जो फिर गया था.... 
जमना पूरे समय काम में खटती रहती....
एक तो दोनों बच्चियों को सम्हालना और सारे काम 
भी करना.... हिम्मत न पड़ती बिल्कुल..... 
जचकी के बाद न आराम मिला..... न ही ढंग से खाने को.... सो शरीर तो टूटना ही था.... फिर भी 
ऊपर से सासु माँ के ताने उठते बैठते और गालियाँ 
अलग सुनना पड़तीं.... करमू का भी सहारा न था.. 
जो सबेरे चाय नाश्ता करके निकलता.... सो दिन में
आता भी.... तो खाना खाकर फिर निकल जाता.... 
रात के दुकान बढ़ा कर ही घर आ पाता..... 

काये कहाँ मर गयी.... चाय भी मिल है कि ने मिल पाहै....जे नासमिटी मौड़ियों कोयी संवारवे में लगी रहत...काम काज की कछु फिकर नैंया...कामचौर.. 
लायी माँ जी.....अभी लायीऽऽ जा रोली उठ गयी... सोकर....झट बच्ची को लिटा कर.....चाय बनायी...
माँ जी...चाय ऐ गौरी को कछु दे है कि नाहीं.... ऐ 
मौड़ी की तो फिकरयी नैंया...दिन भरे पसरर्रा (पालथी) मार कर ओली में लय बैठत रहत.... 
"ने काम काज की ढाई मन अनाज की"
(काम धाम न करना खूब खाना) 

बच्चियाँ सो रहीं हैं...सो रसोई में जाकर... जल्दी जल्दी काम निपटाने में लग गयी.... एक तरफ दाल 
चढ़ा कर रोटी सेंकने लगी.... चूल्हे की गर्मी सहन 
नहीं हो पा रही....इतने में छोटी बच्ची रोने लगती 
है.... हमने सोची चूल्हे की रोटी उतार कर जायें... 
नहीं तो जल जायेगी.... इतते में तो सास माँ आ गयीं.... काय री कन बेहरु... सुनायी नहीं देत का...बा करिया मों फाड़ के रो रयी आये... हमाओ 
मूड़ पिरान (सिर दुखना) लगत.... 

जमना जल्दी से हाथ धोकर.... धोती से अपना मुँह पोंछती है.... पसीने में तर बतर जो हो गयी थी.... 
बच्चे को उठा कर गले लगा कर खूब चूमती है खूब 
प्यार करती है... तू तो लाड़ो है मेरी.... मेरी आँखों का तारा है तू तो....तू तो कान्हा जैसी है... तेरा नाम
श्यामा रखूं कि श्यामली रखूं..... अरी बोल बोल... 
मैं तो तुझे श्यामली ही कहूँगी..... जैसे इस जगत में 
कृष्णा का नाम है.... तेरा नाम भी रौशन होगा.....

सासु माँ आंई और बच्ची को झटक के नीचे लिटा दी.... अब ओयी को खिलात रे है कछु काम भी कर 
है.... लकड़ियाँ बरी (जली) जा रयीं आयें... मुफत 
में नोंयीं मिलत....करमजली निपूती..... नास कर दयी बंस हमाओ....पाँव पटक के बाहर चलीं गयीं..
अब घर में रोज का यही माहौल हो गया था..... 

बच्चियों को बिल्कुल हाथ न लगातीं... न घर के काम में कोई मदद... बस गौरी और वो.... 
दिन भर गौरी को लेकर.... बाहर ओटले पर बैठी रहतीं....बाहर कोई से भी बात करेंगी.... का बतायें 
हमयी रे करम फूट गये...मौड़ीं मौड़ियाँ जनी हैं.... 
करमजली को इततो इलाज करवाओ.... पैसा को 
पैसा चलो गओ.....हाथ कछु ने आओ....हमाओ तो बंसयी खतम हो गओ...जा अबयीं फिरके मोड़ी 
भई सो बा भी करिया धरी कोयला सी..... 

अपने नाम बिल्कुल विपरीत हैं... नाम तो शान्ति है..
अब क्या करेंगे.... हमायी तो कुछ समझ में नहीं आ 
रहा....हमारी दूर के रिश्ते की भाभी.... उन्हें लड़की गोद चाहिए... सो आज इनसे बात करुंगी..... 
मन ही मन बातें कर रही है जमना..... 
जे दो महिना हमाये कैसे बीते हमयी जानते हैं..... 
वो बच्ची के मन पर क्या बीतेगी.... सोच सोच के
जी भर आता है....पता नहीं क्या लिखा कर लायी है अपनी किस्मत में.... 

क्रमशः--.......

     कहानीकार -रजनी कटारे 
           जबलपुर (म. प्र.)

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2 Comments

Zakirhusain Abbas Chougule

20-Nov-2021 07:37 PM

बहुत खूब

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Swati chourasia

20-Nov-2021 06:59 PM

Very beautiful 👌

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